Book Title: Jain Gyan Gun Sangraha
Author(s): Saubhagyavijay
Publisher: Kavishastra Sangraha Samiti

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Page 509
________________ 490 पोषधविधि। . पौषधिक के रात्रिकप्रतिक्रमण में जो फेरफार है वह "पोषध लेने के बाद राइयप्रतिक्रमण" नामक 'दिवसपोषध' के छठे प्रकरण में बता दिया है। 6 प्राभातिक प्रतिलेखना. रात्रिपौषधिकों को प्राभातिक प्रतिक्रमण करके सूर्योदय होने के लगभग समय में प्रतिलेखना करनी चाहिये / / इस प्राभातिक प्रतिलेखना की विधि अक्षरशः "प्रतिलेखना विधि- नामक 'दिवसपोषध' के 4 थे प्रकरण में लिखे मुजब है / भेदमात्र इतना ही है कि वहां पोषध उच्चरने के अनन्तर होने से 'इरियावही' किये बिना ही पडिलेहण शुरू की जाती है और यहां खमासमणपूर्वक इरियावही करने के बाद खमा० इच्छा० 'पडिलेहण करूं ?' इत्यादि आदेश मांगे जाते हैं, बाकी तमाम विधि एक ही है। 7 देववन्दन तथा सज्झायप्रतिलेखना के बाद रात्रिपौषधिक को "देववन्दन विधि" नामक 7 वें प्रकरण में लिखित विधि मुजब देववन्दन और "सज्झायविधि" नामक 8 वें प्रकरण में लिखित विधि मुजब सज्झाय करना चाहिये / बाद में दण्डासन, कुण्डी, पानी, कुण्डल, कम्बल, आदि जो चीजें याच कर ली हों वे सब पोषधरहित-गृहस्थ को सौंप दे / बाद में पोषध पारे /

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