________________ श्रीजैनशान-गुणसंग्रह 497 'सकायनी रक्षा करूं' तक के 25 बोल शरीरपडिलेहणा के हैं, इसलिये इनको बोलते समय इनके आगे () ऐसे कोष्ठक में लिखित अङ्ग-विभाग में मुहपत्ति को फिरा कर उसकी पडिलेहणा की जाती है / पडिलेहण में बोलों का उपयोग ऊपर जो मुइपत्तिपडिलेहणा के बोल कहे हैं वे पुरुषों की अपेक्षासे समझना चाहिये / स्त्रियां अंगपडिलेहणा के बोलों में से मस्तक के 3, हृदय के 3 और दो भुजाओं के 4 इन 10 बोलों को छोड कर शेष 40 बोलती हैं। _ धौती, उत्तरासन, कम्बल आदि वस्त्रों की पडिलेहणा करते समय भी मुहपत्तिक 25 बोल कहने चाहिये / कटासन चरवला और सूती कन्दोरा इन्हीं 25 बोलों में से शुरू के क्रमशः पन्द्रह, दश और दश बोलों से पडिलेहने चाहिये / 5 पोषध में जरूरी उपकरण दिवस-पोषध करने वाले को 1 मुहपत्ति, 1 चरवला, 1 कटासन, 1 धोती, 1 सूती कन्दोरा, 1 उत्तरासन, 1 लघुनीति तथा बड़ीनीति जाते समय पहिरने योग्य धोती और 1 नाक साफ करने के लिये वस्त्र का टुकडा, इतने उपकरण पास में रख कर पोषध लेना चाहिये /