Book Title: Jain Gyan Gun Sangraha
Author(s): Saubhagyavijay
Publisher: Kavishastra Sangraha Samiti

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Page 505
________________ रात्रिपोषध - 3 दैवसिक प्रतिक्रमण देवसिकप्रतिक्रमण सभी पौषधिकों के लिये समान है इस वास्ते 'दिवसपोषध' के अधिकार में कहे मुजब ही रात्रिपोषधवालों को भी दैवसिकप्रतिक्रमण कर लेना चाहिये / हां, इतना जरूर है कि रात्रिपोषधवालों को प्रतिक्रमण के पूर्ण होने पर इरियावही या चउकसायादिविधि करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह विधि उनको संथारापोरिसी पढाते समय करने की है। 4 संथारा पोरिसी पढाने की विधि लगभग एक पहर रात तक का समय पौषधिक को स. ज्झाय-ध्यान या धर्मचर्चा में बीताना चाहिये, और बाद में पूर्वप्रतिलेखित स्थान में दण्डासन या चरवले से प्रमार्जन कर संथारा करे / पूर्वकाल में संथारा दर्भ का किया जाता था परन्तु आज कल ऊनी संथारिया या कम्बल बीछा कर उस पर एक सूती कपडा (उत्तरपट्टा) बीछा लेते हैं। __ संथारा बीछा कर नीचे लिखी विधि से संथारा पोरिसी पढाई जाती है। ___ खमा० इच्छा० 'बहुपडिपुन्ना पोरिसी' फिर खमासमणपूर्वक इरियावही करे / बाद में खमा० इच्छा० 'बहुपडिपुन्ना

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