________________ पोषधविधि।.. ३-विषयवासना का त्याग कर ब्रह्मचर्य पालन करना उसे 'ब्रह्मचर्यपोषध' कहते हैं / ४-सांसारिकप्रवृत्तियों का त्याग कर धर्मध्यानमें प्रवृत्ति करना उसका नाम 'अव्यापारपोषध / ' ____ उक्त चारों भेदों को देश और सर्वसे गिनने से आठ भेद होते हैं और उनके संयोगी भेद 80 होते हैं, परन्तु पूर्वाचार्यों की परंपरानुसार आज कल केवल आहारयोषध देश और सर्व भेद से किया जाता है, शेष तीन प्रकार के पोषध सर्व से किये जाते हैं, देश से नहीं / आहारपोषध में सर्व प्रकार के आहारों का त्याग कर 'चउविहार' उपवास करना उसको 'सर्व से आहारपोषध' और तिविहार उपवास, आ बिल, नीवि, एकाशन करना उसको 'देश से आहारपोषध' कहते हैं। 2 पोषध लेने का समय मुख्यवृत्त्या रात्रिप्रतिक्रमण करने के पहले पोषध लेना चाहिये, फिर रात्रिप्रतिक्रमण कर के प्रतिलेखना करनी चाहिये, परन्तु आजकल पहले रात्रिपतिक्रमण कर लेते हैं, फिर शरीरचिन्ता आदि से निवृत्त हो जिनमंदिर का योग हो तो जिन पूजा कर के बाद में पोषध ग्रहण करते हैं। कुछ भी हो परंतु जहां तक हो सके पोषध जल्दी लेना चाहिये, समय हो तो पूजा