Book Title: Jain Gyan Gun Sangraha
Author(s): Saubhagyavijay
Publisher: Kavishastra Sangraha Samiti

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Page 497
________________ 478 पोषधविधि। पानी न पिया हो और पीना भी न हो तो यहां पर चउविहार उपवास का पच्चक्खाण कर ले। फिर खमा० इच्छा० 'उपधि संदिसाहुं 'इच्छं' खमा० इच्छा० 'उपधि पडिलेहुँ' 'इच्छं' कह कर बाकी सर्व वस्त्रों की पडिलेहण करे। पडिलेहण करके सब अपने अपने वस्त्रादि उपकरण उठा कर खडे हो जायें और उनमें से एक जन इरियावही करके काजा ले शुद्ध कर दूसरी बार इरियावही कर विधिपूर्वक्र परठ देवे और अन्त में सर्व अविधि आशातना का मिच्छामि दुक्कडं दें। 17 मुट्ठिसहिअ पच्चक्खाण पारने की विधि पडिलेहण में जिसने मुट्ठिसहिअं का पञ्चक्खाण किया हो और पानी पीना हो वह पडिलेहण करके पहले मुट्ठिसहि का पच्चक्खाण पारे। . मुट्ठिसहिअं का पच्चक्खाण पारने में विशेष विधि नहीं है, कटासनपर बैठ दाहिने (जीमने) हाथ की मुहि वाल कर चरवले पर रखे और एक नक्कार गिन कर "मुट्ठिसहि पञ्चक्खाण फ.सिअं, पालिअं, सोहिअं, तीरिअं, किट्टिअं, आराहियं, जं च न आराहियं तस्स मिच्छामि दुक्कडं" यह पाठ बोल पच्चक्वाण पारे और यह भी न बने अथवा याद न हो तो मुढिवाल के तीन नवकार गिनने से भी चल सकता है। पीछे देववन्दन के पहले पहले पानी पी लेवे, क्यों कि देववन्दन करने के बाद

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