Book Title: Jain Gyan Gun Sangraha
Author(s): Saubhagyavijay
Publisher: Kavishastra Sangraha Samiti

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Page 498
________________ श्रोजैनज्ञान-गुणसंग्रह 479 पानी नहीं पियां जाता। बाद में सब मिलकर तीसरी बार का देववन्दन करे। 18 देवसिक प्रतिक्रमण प्रतिक्रमण पोसहवालों और दूसरों के लिये एक ही है, परन्तु उसमें जहां जो फरक आता है वह यहां बताया जाता है। ___ पौषधिक श्रावक को प्रतिक्रमण के समय सामायिक लेने की, पच्चक्खाणमुहपत्ति पडिलेहणे की और पच्चक्खाण लेने के लिये दो वन्दन देने की जरूरत नहीं है, क्यों कि उनके सामायिक ली हुई है और पच्चक्खाण की क्रिया पडिलेहण के समय की हुई है / हां, पाणाहार का पच्चक्खाण पहले न किया हो तो उस समय कर ले / बाकी पौषधिक को इरियावही करके प्रतिक्रमण का चैत्यवन्दन शुरू करना चाहिये और दैवसिक या पाक्षिक जो प्रतिक्रमण हो विधिमुजब करना चाहिये। उसमें सात लाख और अठारह पापस्थान की जगह पौषधिक "इच्छाकारेण संदिसह भगवन् गमणागमणे आलोउं?" 'इच्छं' कह कर "इरिया समिति, भाषासमिति०" इत्यादि 'गमणागमणे' का पाठ बोले और 'करेमि भन्ते' के पाठ में 'जाव नियम के स्थान में 'जाव पोसह शब्द चोले /

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