Book Title: Jain Gyan Gun Sangraha
Author(s): Saubhagyavijay
Publisher: Kavishastra Sangraha Samiti

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Page 496
________________ . श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह . 477 सीन चीजों के उपरान्त कंदोरे और धौती की भी इसी समय पहिलेहग करे। बादमें पांच उपकरणों की पडिलेहणा करनेवाले इरियाचही करके और तीन उपकरण पडिलेहने वाले विना इरियावही किये ही 'खमासमण' देकर 'इच्छकारी भगवन ! पसाय करी पडिलेहणा पडिलेहावो जी' इस प्रकार आदेश मांग के मुनिराज का योग हो और स्थापनाचार्य की पडिलेहणा उन्होंने कर दी हो तो बड़ेरे श्रावक के उत्तरासन की पडिलेहणा करे, अगर स्थापनाचार्य की पडिलेहणा न हुई हो तो होने तक ठहर जाय, बाद में उत्तरासन पडिलेहे, अगर गुरुमहराज का योग न हो और स्थापनाचार्य के आगे पोसह किया हो तो यहां स्वयं स्थापनाचार्य की पडिलेहण करे, फिर खमा०इच्छा० 'उपधिमुहपत्ति पडिलेहुँ' 'इच्छं' कह मुहपत्ति पडिलेहण करे, बाद में खमा० इच्छा०"सज्झाय करूं' 'इच्छं' कह एक नवकार गिन उकडु बैठ कर 'मन्नह जिणाण सज्झाय कहे / बाद में खाने चाले दो वंदन देकर पानी न पीना हो तो पाणाहार का और पानी पीना हो तो मुट्टिसहियं का पच्चक्खाण करे / तिविहार उपवासवालों को वंदन देने की जरूरत नहीं, वे खमासमण दे के 'इच्छकारी भगवन् पसाय करी पच्चक्खाण का आदेश दीजो जी' कह कर पाणाहार का पच्चक्खाण करे। चउविहार उपवासचालों को यहां पच्चक्खाण करने की जरूरत नहीं है / जिसने प्रातःकाल तिबिहार उपवास का पच्चक्खाण किया हो परंतु

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