________________ श्रीजैनशान-गुणसंग्रह कर केपोषध लेना अच्छा है, परन्तु पूजा के आग्रह से पोषध लेने में अधिक विलंब करना भी अच्छा नहीं है। 3 पोषघलेने की विधि प्रथम खमासमण देकर "इच्छाकारेण संदिसह भगवन् इरियावहियं पडिकमामि" 'इच्छं' कह कर 'इरियावही' 'तस्स उत्तरी' 'अन्नत्थ' बोलकर एक 'लोगस्स' अथवा चार नवकार का काउस्सग्ग करे, पार कर ऊपर प्रकट लोगस्स चोल, फिर खमा०, इच्छा• 'पोसहमुहपत्ति पडिले हुँ' इच्छं कह कर १-यह 'इच्छं' 'इच्छामि' क्रियापद का रूप है, इसका अर्थ 'चाहता हूँ' यह होता है / यह पद आदेशस्वीकारात्मक होने से गुरु का आदेश प्राप्त होने पर बोलना चाहिये, परन्तु गुरु के अभाव में स्थापनाचार्य को गुरु मान कर उनके आगे क्रिया करते समय भी प्रत्येक आदेश के अन्त में यह पद अवश्य बोलना चाहिये। ... २-जहां जहां लोगस्स' का काउस्सग्ग लिखा हो वहाँ 'लोगस्स' ही गिनना चाहिये, परन्तु जिसको लोगस्स याद न हो यह एक लोगस्स के बदले में चार नवकार गिने / ३-जहां केवल 'इरियावही' करने का लिखा हो वहां भी इसी प्रकार खमासमणपूर्वक आदेश मांग कर इरियावही, तस्स उत्तरी, अन्नत्थ आदि सूत्र बोलकर एक लोगस्स का काउस्संग करना चाहिये और ऊपर प्रकट लोगस्स कहना चाहिये। . ४-जहां जहां 'खमा०' लिखा हो वहां 'इच्छामि खमास