________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 463 न कारवेमि, तस्स भन्ते पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि / " खमा० इच्छा० 'सामायिकमुहपत्ति पडिलेहुं ?' 'इच्छं' कह बैठकर मुहपत्ति पडिलेहण करे और खमा० इच्छा० 'सामायिक संदिसाई' 'इच्छं' खमा० इच्छा० 'सामायिक ठाउं' 'इच्छं' कह एक नवकार गिन "इच्छकारि भगवन् पसाय करी सामायिक दंडक उच्चरावोजी" यह बोल कर गुरुमुखसे अथवा स्वयं नीचे का पाठ बोलकर सामायिक व्रत उच्चरे____ "करेमि भन्ते सामाइयं, सावज जोगं पञ्चस्वामि, जाव पोसहं पज्जुवासामि, दुविहं. तिविहेणं-मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि, तस्स भन्ते पडिकमामि निन्दामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि / " बाद में खमा० इच्छा. 'वेसणे संदिसाहुँ' 'इच्छं' खमा० इच्छा० 'बेसणे ठाउं' 'इच्छं' खमा० इच्छा० 'सज्झाय संदियदि रातपोषध भी करना चाहे तो दिन के रहते हुए फिर पोषध उच्चरे और पाठ "जाव अहोरत्तं" बोले / १-पोषध के विना सामायिक करना हो उसकी भी यही विधि है / इरियावही करके सीधा सामायिक मुहपत्ति पडिलेहण करे और तीन नवकार गिनने पर्यन्त तमाम विधि यहां लिखे मजव करे, सिर्फ 'जावपोसहं' के स्थान 'जाव नियम' ऐसा पाठ बोले /