Book Title: Jain Gyan Gun Sangraha
Author(s): Saubhagyavijay
Publisher: Kavishastra Sangraha Samiti
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________________ 468 पोषधविधि। 8 सज्झायविधि खमा० इच्छा० 'सज्झाय करूं' 'इच्छं' कह कर उकडु पगो पर बैठ नवकार गिन के एक जन 'मन्नहजिगाण' सज्झाय कहे और दूसरे सब सुने / सज्झाय के अंत में फिर नवकार गिनने की जरूरत नहीं है। "मन्नह जिणाण" सज्झाय मन्नह जिणाणमाणं, मिच्छं परिहरह धरह सम्मत्तं / छब्धिह आवस्सयम्मि, उज्जुता होह पइदिवसं // 1 // पव्वेसु पोसहवयं, दाणं शीलं तवो अभावो अ। सज्झायनमुक्कारो, परोवयारो अजयणा य // 2 // जिणपूआ जिणथुगणं, गुरुथु साहम्मिआण वच्छल्लं / घवहारस्स य सुद्धी, रहजत्ता तित्थजत्ता य // 3 // उवसम-विवेग-संवर, भासासमिई छजीवकरुणा य / धम्मिअजणसंसग्गो, करणदमो चरणपरिणामो // 4 // संघोवरि बहुमाणो, पुत्थयलिहणं पभावणा तित्थे / सड्डाण किच्चमेअं, निच्चं सुगुरूवएसेणं // 5 //
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