________________ 462 पोषधविधि। मुहपत्ति की पडिलेहणा कर खमा० इच्छा० पोसह संदिसाई 'इच्छ' खमा० इच्छा० 'पोसह ठाउं' 'इच्छं' कह के दोनों हाथ जोड एक नवकार पढकर खडा हो "इच्छकारि भगवन् ! पसाय करी पोसहदंडक उच्चरावोजी" इस प्रकार बोलकर गुरुमुख से पोसह उच्चरे, गुरु का योग न हो तो स्वयं अपने मुखसे नीचे का पाठ पढकर पोषध उच्चरे "करेमि भन्ते पोसहं, आहारपोसहं देसओ सबओ, सरीर सक्कारपोसहं सव्वओ, बम्भचेपोसह सव्वओ, अव्यावारपोसहं सबओ / चउबिहे पोसहे ठामि / जावदिवसं पज्जुवासामि, दुविहं तिविहेणं-मणेणं वायाए काएणं, न करेमि मणो वंदिउं जावणिजाए निसीहिआए मत्थएण वंदामि' इस प्रकार यह संपूर्ण सूत्र बोलना / १-जहां इच्छा० लिखा है वहां "इच्छाकारेण संदिसह भगवन्” इतना वाक्यं बोलना चाहिये / . २-गुरु के अभाव में पोषध लिया हुआ कोई जानकार श्रावक वहां हाजर हो तो उसके मुखसे भी पोषध लिया जा सकता है। ३-आठ पहर का पोषध उच्चरते समय "जावदिवसं" के स्थान में “जाव अहोरत्तं” और रात्रि के चार पहर का पोषध उच्चरते समय "जाव सेसदिवसं रत्तं” ऐसा पाठ बोलना चाहिये / यदि चार पहरका और आठ पहर का साथ उच्चरना हो तो "जाव दिवसं अहोरत्तं".ऐसे बोलना चाहिये / प्रातःकाल चार पहर का पोषध उच्चरनेवाला