________________ 440. श्री गोलनगरीय-पार्श्वनाथप्रतिष्ठा-प्रबन्ध है, उस समय उपयुक्त जातियों के अतिरिक्त शिल्पि को भी पारितोषिक दान (इनाम) दिया जाता है। अंजनशलाका जैसे महोत्सवों में इस प्रसंग पर सेंकडों रुपया का दान देना पडता है, गोलनगर में भी श्रीपार्श्वनाथ भगवान् की प्रतिष्ठा और स्थापना के समय वैसा ही हुआ, सब याचक दान से संतुष्ट किये गये। इस के बाद सब से माके का दान मुंडका दान है / अर्थात् प्रतिष्ठा होने के बाद प्रतियाचक कुछ दान दिया जाता है जो 'मुंडका' कहलाता है। खास तो मुंडका दान देने की रीति सेवकों के लिये ही प्रचलित है, परन्तु आज कल यति लोग भी मुंडका लेते हैं और उन के मुंडके की रकम सेवकों के मुंडके की रकम से दुगुनी होती है। अर्थात् सेवकों को प्रतिमनुष्य एक रुपया दिया जाता है तो यतियों को दो, सेवकों को दो तो यतियों को चार / मारवाड में याचकों में सब से अधिक संख्या सेवकों की, उन के बाद यतियों की, फिर श्रीमाली ब्राह्मण, भट्ट ब्राह्मण, भोजक, रावल आदि जातियों के नम्बर होते हैं। ____ गोल के महोत्सव पर सेवकों की संख्या 500 पांच सौ के लगभग थी / यतियों की 100 एक सौ की। श्रीमाली, भट्ट, रावल, भोजक आदि प्रत्येक की संख्या सौ के अंदर थी। गोल के संघने सेवकों को प्रति मनुष्य 3 रुपया मुंडका