________________ . श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह . 437 ... रात को करीब तीन बजे के समय महारात्री की वह संघसभा विसर्जन हुई थी और गोल श्रीसंघ के आगेवान उसी समय से द्वितीय दिन के कार्यों में प्रवृत्त हुए थे। 30 पंचमी का मंगल-प्रभात ___ संवत् 1991 के द्वितीयवैशाखशुक्लपंचमी का प्रभात अपूर्व मंगलसमय था / जैन संघ के ही नहीं मनुष्यमात्र के मुख पर उस समय एक प्रकार की प्रसन्नता छायी हुई थी। जिन जिन भाग्यवानों ने रात्रि के समय चढावे बोले थे वे सब स्नानमन्जनपूर्वक शुद्धवस्त्र पहन कर तैयार हो रहे थे। महाराजसाहब भी आज बहुत जल्दी से अपने आवश्यककार्यों से निवृत्त हो कर प्रतिष्ठामंडप में पधार गये थे / जिन बिम्बों के अधिवासनापर्यंत के संस्कार पहले हो चुके थे, आज अंजनशलाकाद्वारा नेत्रोन्मीलन कर केवलज्ञान और निर्वाणकल्याणक की विधि करना शेष था। इन कामों के उपयुक्त सब सामग्री पहले ही से तैयार करवा रक्खी थी। शेष विधान पूरा करने के उपरान्त अंजनशलाका का लग्न और नवांश आते ही मुनिमहाराजश्रीकल्याणविजयजीने सुवर्णशलाका से श्रीपार्श्वनाथ भगवान् की अंजनशलाका की। बाद में शेष सभी जिनबिम्बों के भी अंजन कर नेत्रोन्मीलन किया। यह कार्य बडी शान्ति और शुभ निमित्तों में हुआ।