________________ 420 श्री गोलनगरीय-पार्श्वनाथप्रतिष्टा-प्रबन्ध . निशानडंके के पीछे चलती हुई विविधवेश-भूषाभूषित घोडेस्वरों की दुकडी प्रेक्षकों का ध्यान अपनी तरफ खींचती। घोडेस्व.रों के पीछे रथ, रेकले, सहजगाडी, सोनाचांदी का रथ आदि की कतार चलती हुई वरघोडे की भव्यता प्रदर्शित करती। रथगाडियों की कतार के पीछे ढोल, थाली, तुरही, आदि देशी बाजा चलता और अपनी ध्वनि से प्रेक्षकों के हृदयों को हर्षमग्न बनाता। देशी बाजे के पीछे अंग्रेजी बैंड बाजे वालों की दुकडी मयवर्दी के चलती। इस के बाद दोनों हाथी अपने अपने साज शणगार के साथ 10-10-12-12 सवारियां लिये मंदगति से चलते हुए वरघोडे की शोभा को बढाते थे। इस के बाद भगवान की पालकी और पुरुषवर्ग ताल, दोलक के साथ भक्तिमय गाने गाता चलता था / पुरुषों के बाद सोना चांदी के मेरु, कल्पवृक्ष, पारणा, सुपन आदि विविध साज उपाडे हुए मधुर गीत गाता- स्त्री मंडल चलता / इस मंडल के चारों तरफ स्वयंसेवक रस्सियों से कोर्डन बना कर बडी मुस्तेदी के साथ चलते थे।