________________ .. श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह कारण लेख लांछन खुदवाने के बाद वे शुदि 3 के दिन विधि में शामिल की गयीं और उसी दिन प्रथम च्यवन और जन्म कल्याणक के संस्कार करके फिर सब पर तीसरे दिन का विधान किया गया था। इस के सिवा सभी कार्य कुंकुमपत्री में लिखे मुजब ही किये गये थे। 24 क्रिया-विधान प्रतिष्ठा-अंजनशलाका संबन्धी जो जो क्रिया--विधान साधु से हो सकता था वह तो महाराज श्रीकल्याणविजयजी तथा मुनिश्रीसौभाग्यविजयजी के ही हाथ से होता था, परन्तु जो कार्य गृहस्थोचित होते वे शेठ नगीनभाई और उन के सहकारियों के हाथ से होते थे। - यद्यपि कुंकुमपत्री में महाराज साहब के हाथ नीचे क्रियाकारक के तौर पर गुरां साहब श्रीभक्तिसोमजी का नाम छपवाया था, परंतु पं० भक्तिसोमजी कई महीनों से बीमार होने से क्रियाविधान करने के लिये छाणी (बड़ोदा) से शेठ नगीन: भाई को बुलाने का प्रबन्ध महाराजसाहब ने पहले ही कर लिया था और नगीनभाई द्वितीयवैशाखशुदि 11 के रोज अपनी सहकारीमंडली के साथ वहां पधार गये थे। चैत्यवं. दन, मंत्रन्यास, मुद्रा, जिनाह्वान, वासक्षेप, नेत्रोन्मीलन आदि जो जो कर्तव्य गुरुमहाराज के करने योग्य होते वे सब