________________ 426 श्री गोलनगरीय-पार्श्वनाथप्रतिष्ठा-प्रबन्ध महाराजसाहब स्वयं कर लेते थे और बलिखेप, नैवेद्य दौकन, पुष्पांजलि, अंगचर्चा, पूजा आदि जो जो कृत्य श्रावक के करने योग्य होते वे सभी शेठ नगीनभाई और उन के सहकारी करते थे / गुरु और श्राद्ध दोनों क्रियाकारक अपने अपने कार्यों में कुशल होने से विधि-विधान बहुत ही शान्ति और निर्विप्रतापूर्वक हुआ करता था। 25 पूजा-भक्ति . द्वितीय वैशाखवदि 11 के दिन शुभमुहूर्त में प्रतिष्ठामंडप में सिंहासन स्थापित किया गया था और उस में पूर्वप्रतिष्ठित जिनप्रतिमा पधरा कर उसी दिन से कुंकुमपत्री में लिखे मुजब भिन्न भिन्न पूजायें पढा कर भगवान की भक्ति की जाने लगी थी। .. यों तो गोल में तथा बाहर से आये हुए संघ में पूजा पढाने वाले बहुतसे गवैये थे, तथापि पूजाभक्ति को अधिक रोचक बनाने के लिये पूजा पढाने के लिये पालिताणा के प्रसिद्ध गवैये श्रीयुत नंदलालजी बुलाये गये थे। इन गवैयाजी को जिन्होंने पूजा पढाते सुना है वे ही इन के गाने की खूबियाँ जानते हैं। इस रसात्मक विषय का कलम से लिखना असंभव है। जब ये हारमोनियम के साथ पूजाओं की ढालें गाने लगते थे हजारों आदमियों की सभा स्तब्ध सी हो कर चुपचाप सुनने