________________ ... श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह आदि सब सामान पहुंचाना और वह भी वगैर विलंब के, इन सेवामडलों के सिवा अन्य किसी से नहीं बन सकता। महोत्सव के आखिरी दिनों में जब कि महमानों की संख्या 15000 से 20000 तक पहुंच चुकी थी, इन मंडलों ने जो तत्परता पूर्वक सेवा उठायी, इतनी विशाल जनसंख्या होने पर भी किसी चीज की कमी न आने दी, यह एक चिरस्मरणीय प्रसंग है और विविध प्रान्तों के श्रीसंघ जो वहां पधारे हुए थे इस प्रसंग को कभी नहीं भूलेंगे। 18 वरघोडा (जुलुस) हम ऊपर उल्लेख कर चुके हैं कि दोनों समय वरघोडे. निकलते और उन की व्यवस्था स्वयंसेवक करते, परंतु इतने ही से वरघोडों की वास्तविकता का अंदाजा नहीं हो सकता, इस लिये यहां वरघोडे के संबन्ध में कुछ लिखेंगे। वरघोडा निकलने के समय जनसमुदाय इतना इकट्ठा हो जाता कि देखने वालों को पता तक नहीं चलता कि इस भीड का कहीं छोर भी है या नहीं, इतने पर भी सेवामंडलों की व्यवस्था इतनी उत्तम थी कि किसी को कुछ तकलीफ नहीं होने पाती। वरघोडे में सब से आगे नगारा निशान चलता और अपनी प्रचंड ध्वनि से भीड को हटाता हुआ मार्ग करता जाता।