________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह .. . 383 इसवास्ते आप आज्ञा फरमावें / तब महाराजश्रीने धारणागतियंत्रानुसार गोल के लिये मूलनायक पार्श्वनाथ भगवान् तथा अन्य मूर्तियों के नामों का लिस्ट करके दिया। वहांसे दो जने गजधर सोमपुरा के साथ जयपुर मूर्तियों का ओर्डर देने गये और दो जने गांव चांदराईवाले मिस्त्री दानाजी लोहार को साथ ले सुमेरपुर दंड कलशों का सामान लेने गये / महाराज साहब तखतगढ में कुछ समय तक ठहर कर फिर वहां से विहार कर पौष शुदि 4 लुणावे पधारे / 5 महाराज साहब का लुणावा से गोल के लिये विहार चैत्रवदि में उपधान की माला के उत्सव पर फिर गोल के पञ्च लुणावे गये और वहां से जल्दी विहार कर पञ्चों के साथ पधारने की प्रार्थना की, जिसके उत्तर में महाराजश्री ने फरमाया कि 'हमारे साथ किसी के रहने की जरूरत नहीं है। हम चैत्रवदि अमावस्या तक यहां से विहार नहीं करेंगे। चैत्रशुदि 1 के दिन यहां से विहार होगा और चैत्रशुदि 10 को गोल पहुंचेंगे और उसी दिन नोकारसियों के चढावे बोले जायंगे।' __शांतिपूर्वक उपधान की समाप्ति चैत्रवदि में हो गयी। चैत्रशुदि 1 के दिन दोनों मुनिमहाराजों ने लुणावा से विहार किया और वीसलपुर, सुमेरपुर, वांकली, पावटा, अगवरी, आहोर, लेटा, जालोर और पिंजोपुरा इन गांवों में एक एक