________________ 386 श्री गोलनगरीय-पार्श्वनाथप्रतिष्ठा-प्रबन्ध . भक्तिसोमजी-आप की आज्ञा हो तो पं. गौरीशंकरजी को बुलवा लूं ? __महाराज-खुशी से बुलवाइये और किसी अन्य विद्वान् पर श्रद्धा हो तो आप उस को भी बुला सकते हैं। इस पर. पंडित गौरीशंकरजी श्रीमाली बुलाये गये जो 10 मिनट में ही आ गये / जोषीजी कुछ ज्योतिष की पुस्तकें भी साथ ले आये थे। . महाराजश्रीने पूछा-कहिये पंडितजी! प्रतिष्ठासंबन्धी मुहूर्त के विषय में आप का क्या मत है ? / पंडितजी-पंचमी से षष्ठी का दिन मुझे ठीक जंचता है, क्योंकि उस दिन रवियोग' है और वास्तुचक्र (कलश. चक्र) भी मिलता है। ___ महाराज-प्रतिष्ठा के मुहूर्तमें रवियोग अवश्य होना ही चाहिये ऐसा कोई नियम नहीं है। कलशचक्र के संबन्धमें भी एकान्त नहीं है कि उसके सिवा प्रतिष्ठा हो ही न सके। कलशचक्र एक नक्षत्रयोग है, और केवल नक्षत्रबल पर ही प्रवेशादिकार्य करते समय इस का होना जरूरी माना गया है। जहां पंचांगशुद्धि की गवेषणा की जाती है, वहां कलशचक्र पर आधार नहीं रहता / इसी कारण प्राचीन ज्योतिषशास्त्रों में कलशचक्र की चर्चा ही नहीं है /