________________ __.. श्रीजैनशान-गुणसंग्रह 402 महाराज साहब की सलाह मुजब मण्डप का प्लान बनाया गया था और उसी मुजब शुभमुहूर्त में मण्डप स्तम्भारोपण कर कार्य आगे चलाया गया, और करीब एक महीने के अन्दर देवविमान तुल्य सुन्दर भण्डप बन कर तैयार हो गया। मण्डप के नीचे करीब 3268 बत्तीस सौ अडसठ घनफूट जमीन थी। मण्डप तीन भागों में बंटा हुआ था। सबसे पिछले भाग में बायी तरफ शत्रुजय तीर्थ, दाहिनी तरफ गिरनार और मध्यभाग में तीन गढयुक्त समवसरण की रचना की गयी थी। ये तीर्थ इतने तादृश बने थे कि मानों साक्षात् अपने मूलरूप में ही आकर खडे हो गये हों / एक एक टोंक, एक एक देवल और एक एक गढ किले का आकार इस ढङ्ग से बना था कि जानकार प्रेक्षक देखते ही कह देते थे कि यह शत्रुजय है और वह गिरनार / . - पहाडों पर चढने के मार्ग, वृक्षलताओं के दृश्य, जंगली जानवरों के हूबहू चेहरे, बहते हुए झरनों और नदियों के दृश्य, जलकुंड और चलते हुए फुवारे देखने वालों को आश्चर्य चकित और आनंद मग्न बना देते थे। . मंडप के मध्यभाग में करीब 665 घनफूट भूमिभाग पर नवीन मूर्तियां स्थापित करने और उन का विधि विधान करने के लिये वेदिकायें बनी थीं। यह मध्यवेदिकामण्डप