________________ . .. श्रीजैनशान-गुणसंग्रह 387 पंडितजी-'अच्छा, इस में क्या लिखा है पढ़िये तो' यह कहते हुए उन्होंने पुस्तकमें से नोट किये हुए एक दो श्लोक महाराज के हाथ में दिये / महाराज-इस में पंचम रवियोगात्मक उपग्रह का फल लिखा है और यह ठीक भी है, परंतु यह दोष सर्वत्र वर्जना ही चाहिये ऐसा एकान्त नियम नहीं है। पंडितजी-आप इस का परिहार बतायंगे तो मेरी शंका दूर हो जायगी। इस पर महाराजने आरंभसिद्धिवार्तिक और मुहूर्तचिन्तामणि की पीयूषधारा टीका में से श्लोक बता कर कहा देखो इस में स्पष्ट लिखा है कि 'उपग्रह' का दूषण 'कुरु' और 'बाल्हीक' देश में ही माना है (उपग्रहः स्यात्कुरुबाल्हिकेषु) अन्यत्र उपग्रह शुभ है (अन्यत्र शुभमेव) ऊपर का खुलासा सुन कर पंडितजी बोले-अब मेरे मन में कोई शंका नहीं रही / अब मैं निस्सकोचभाव से स्वीकार करता हूँ कि पंचमी का दिन श्रेष्ठ है / उस में दोष की मुझे जो शंका थी वह निकल गयी। इस प्रकार पं. भक्तिसोमजी और पंडित गौरीशंकरजी जो कि मुहूर्त विषयमें शंकाशील थे, दो ही घंटों में निशंक हो गये, इस घटना से श्रावकसंघ भी आश्चर्यचकित हुआ कि दो ही घडी में महाराजने क्या जादू कर दिया कि मुहूर्त के संब