________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 385 जाहिर किया तो सारा गांव आनंदित हुआ, परन्तु यह धार्मिक कार्य भी कतिपय ईर्षालुओं को पसंद नहीं आया। गोल के चोमासी पं० भक्तिसोमजी प्रतिष्ठा कराने का निश्चय हुआ उस समय पालिताणे में थे, पंचों ने चिट्ठी देकर उन को भी गोल बुलाया। परन्तु विघ्नसंतोषी ईर्षालु लोगोंने उन को भी बहकाया कि द्वितीय वैशाखशुदि 5 का मुहूर्त अच्छा नहीं है / यतिजी सरलस्वभावी थे, उन में स्वयं सच झूठ की परीक्षा करने का सामर्थ्य नहीं था अतएव लोगों की बातें सुन कर शंकाकुल हो गये, मुहूर्तविषयक अपना अभिप्राय उन्होंने गोल के श्रावकों को भी दर्शाया, परन्तु श्रावक महाराज पर बडे श्रद्धालु और विश्वासी थे, उन्होंने उत्तर दिया 'मुनिमहाराज कल्याणविजयजीने अगर काली अमावस्या का दिन भी बताया होता तो हमको मंजूर था।' श्रावकों की यह दृढता देख बातें बनानेवाले चुप हो जाते थे। . महाराज गोल पहुंचे उसी दिन दो पहर को पं. भक्तिसोमजी को अपने पास बुलवाया और पूछा कि क्या मुहूर्त के विषय में आप को कुछ शंका है ? / भक्तिसोमजी-हां मेरे विचार में वैशाख शुदि 3 अथवा 6 के दिन ठीक जंचते हैं। ___ महाराज-शुदि 5 मैं क्या कमी है और 3 तथा 6 में विशेषता सो बताइये।