________________ 5 पदसंग्रह / रहेणी कहेणी स्वरूप पद कथनी कथे सब कोइ, रहणी अति दुर्लभ होइ। . शुक रामको नाम वरखाणे, नवि परमारथ तस जाणे / या विध भणी वेद सुणावे, पण अकल कला नवि पावे / क०॥१॥ छत्तीस प्रकारे रसोइ, मुख गिणतां तृप्ति न होई / शिशु नाम नहीं तस लेवे, रस स्वादत सुख अति लेवे।क० // 2 // बन्दी जन कडखा गावे, सुणी सूरा सीस कटावे / जब रूण्ड मुण्डता भासे, सहु आगल चारण नाशे।क०॥३॥ कहणी तो जगत मजूरी, रहणी है बन्दी हजूरी। कथनी साकर सम मीठी, रहणी अति लागे अनीठी।क०॥४॥ जब रहणीका घर पावे, तब कथनी गिनती आवे / चिदानन्द इम जोइ, रहणी की सेज रहे सोइ / कथ० // 5 // - भिन्न भिन्न मत स्वरूप पद मारग साचा को न बतावे / जासु जाय पूछिये ते तो, अपनी अपनी गावे / मारग / मंतवारा मतवाद वाद धर, थापत निज मत नीका। . स्यादवाद अनुभव बिन ताका, कथन लगत मोहे फीका / ... मारग साचा० // 1 //