________________ 5 पदसंग्रह दश दृष्टान्ते दोहिलो, पामी नर अवतार जी। देव गुरु जोग पामी ने, करिये जन्मसुधार जी। सार नही है० // 3 // मारु मारुं करी जीव तूं, फरियो सघले ठाण जी। आश फली नहीं क्यांइये, पाम्यो दुखनी खाण जी। ... ... सार नहीं है. // 4 // मात पिता सुत बांधवा, चढती समे आवे पास जी / पडती समे कोइ नकि रहे, देखो स्वार्थ विकास जी। . . सार नही है. // 5 // रावण सरखो रे राजवी, लंकापति जे कहाय जी / तीन जगत में गाजतो, मन अभिमान धराय जी / सार नही है० // 6 // अन्त समये गयो एकलो, नहीं गयुं कोइ तस साथ जी। एम जाणी धर्म सेवीये, रहेशे परभव साथ जी। . सार नही है० // 7 // मोहनिद्राथी जागीने, करो धर्मसु प्रेम जी / . विजयसौभाग्यनी वाणीने, धारो मन धरि प्रेम जी / सार नहीं है. // 8 //