________________ 364 : 5 पदसंग्रह मारुं तारुं करी शुं मोह पामे, क्षणमां मरी जवु मटके। . चर्म चुंथे शुं चतुर बनीने, चतुरा केरे चटके / . कदी नहीं // 3 // आ मानवतन चिंतामणि सम, ते क्यम व्यर्थ गुमावे / कालं अचानक आवी लेशे, तो पछी नहीं कांइ फावे // .. कदी नहीं // 4 // समकित सुन्दर धारी धरामां, धर्मनुं साधन करजे। जिनवर नाम जपी समतामां, सहज गुणे तूं ठरजे // कदी नहीं // 5 // करी निर्जरा तपथी सारी, कर्म जालने हरजे। आश्रय दूर करी अंतरथी, शिवपद सहेजे वरजे // कदी नहीं // 6 // चेतन उपदेश पद (गाफिल तूं शोच दिल में) . चेतन तूं चेत जलदी, कर ले सुधार अपना / दिखता नहीं है तुज को, इस जींदगी का घटना // चेतन तूं० // 1 // माता पिता वो भाई, निजस्वार्थ के हैं सारे / . छिनमें विछोड तुजको, होते हैं सर्व न्यारे। चेतन० // 2 //