________________ 383 श्रावक-द्वादश व्रत ले जाने वाले अपनी खुशी से जो नकरा दें. उसी से संतोष करें, क्यों कि मंदिर में ज्यों थोडी प्रतिमा रहेंगी त्यों उनकी पूजा भक्ति विशेष होगी और विशेष लाभ प्राप्त होगा। 3 श्रावक-द्वादशव्रत / सम्यक्त्व अथवा समकित स्वरूप निश्चय दृष्टि से वस्तु के यथार्थ स्वरूप पर श्रद्धा होना उसका नाम 'सम्यक्त्व' है और व्यवहार से 1 सुदेव 2 सुगुरु और 3 सुधर्म इन तीन तच्चों पर श्रद्धा करना सो सम्यक्त्व अथवा समकित कहलाता है / (1) सुदेव-जो अठारा दोष रहित, बारह गुण सहित चौतीस अतिशय युक्त और पेंतीस गुणयुक्तवाणी से देशना देने वाले, जिनका ज्ञान सर्वव्यापक हैं, जिनको पुनर्जन्म लेना नहीं है और जो नाम स्थापना द्रव्य और भाव इन चार निक्षेपों से पूजनीय हैं ऐसे प्रभावशाली अरिहंत देव 'सुदेव' हैं। (2) सुगुरु-पंच महाव्रतधारी, सतरा भेद से संयम को पालने वाले, नवगुप्तिगुप्त ब्रह्मचर्य पालक, पांच समिति और तीन गुप्ति रूप आठ प्रवचन माता के आराधक, बयालीस दोष रहित शुद्ध अहार लेने वाले, तीर्थंकर भगवान् के आगमानुसार शुद्ध प्ररूपणा करने वाले ऐसे निस्पृही त्यागी मुनि 'सुगुरु हैं। - (3) सुधर्म-तीर्थंकर भगवान् ने समवसरण में बैठ कर बार पर्षदा के सामने द्वादशांगी की परूपणा कर उसमें शुद्ध