________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 173 हों तो वहां रहने वालों को पांच दिन का सूतक पालना चाहिये / सूतक वाले घर से मिला हुआ आस पास किसी का घर हो, सिर्फ बीच में आडी दिवार (भीत) हो परंतु सूतक वाले घर में जाना आना न होता हो तो उस पडोसी को सूतक नहीं लगता / वह दर्शन पूजा विगेरह कर सकता है / उस के घर का आहार मुनिराज ले सकते हैं। प्रसूति वाली के खान पान रसोई आदि की सरभरा करने वाली स्त्री के सिर्फ ग्यारह दिन का ही सूतक है, इतने दिन तक सामायिक प्रतिक्रमण देवदर्शन आदि नहीं कर सकती। कितनेक लोग उस के लिये सत्ताईस दिन का पर हेज करना कहते हैं सो व्यावहारिक रूढि है, इस रूढि को मान कर ही कितनीक जगह मुनिराज सूतक वाले के घर से सत्ताईस दिन तक आहार पानी नहीं लेते हैं, इस का भी कारण देखा जाय तो यही है कि विशेष सफाई नहीं रहती इस लिये 27 दिन की रूढि चलाते हैं, जहां स्त्रियां सफाई अच्छी रखती हों वहां 12 दिन के बाद आहार पानी लेने में कुछ दोष नहीं है / गुजरात में कहीं कहीं ऐसा रिवाज भी है / मगर उस में देखना यह चाहिये कि बारह दिन के बाद भी जन्म देने वाली स्त्री पनेहरे को छूती न हो अथवा रसोई बनाती न हो / तात्पर्य यह है कि रसोई दूसरी स्त्री करती हो और प्रसूती वाली स्त्री जल तथा रसोई घर में न जाती हो तो बारहदिन के बाद आहार लेना कल्पे, अन्यथा 27 दिन के बाद /