________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 185 रग्रह उस नाडी पर नहीं होगा तो रोगी के जीने की कुछ आशा की जा सकती है। . इन नाडीचक्रों के अवलोकन के साथ ही रोगी को किस नक्षत्र तिथि और वार में रोग उत्पन्न हुआ है यह भी देखना जरूरी है। नाडीचक्र और नक्षत्र-तिथि-वार योग इन दोनों के कम से यदि रोगी का मृत्युयोग बनता हो तो वह रोगी कभी नहीं बचेगा यह निश्चय कर लेना। ... जैसे नाडीचक्रों से मृत्युज्ञान का विधान ज्योतिष ग्रन्थकारों ने किया है वैसे नक्षत्र-तिथि-चार संबन्धी योग से भी रोगी के मरण-जीवन का ज्ञान उन्होंने बताया है, और यह विधान उक्त नाडीचक्रों में भी बहुत सुगम है / जिज्ञासुओं के अवलोकनार्थ हम वह योग नीचे देते हैं- नक्षत्र-तिथि-चार का मृत्युकारी योग..भरणी, कृत्तिका, आर्द्रा, अश्लेषा, पूर्वाफाल्गुनी, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढा, धनिष्ठा, शतभिषक् और पूर्वाभाद्रपद इन नक्षत्रों में से कोई भी एक नक्षत्र हो, चतुर्थी षष्ठी नवमी द्वादशी और चतुर्दशी इन तिथियों में से कोई भी एक तिथि हो और रवि मंगल और शनि इन वारों में से कोई भी एक वार हो तो रोगिमृत्युयोग बनता है / उस समय में जिस को रोगोत्पत्ति हुई हो वह प्रायःकरके मृत्यु पाता है / इस योग में भी चंद्र था तारा की अनुकूलता हो तो कुछ बचने की आशा की जा