________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 3 अथ स्तवनसंग्रह श्री ऋषभदेवजिनस्तवन बालपणे आपण ससनेही, रमता नव नव वेशे। आज तमे पाम्या प्रभुताई, अमे तो संसारनिवेशे हो प्रभुजी ओलंभडे मत खीजो // 1 // जो तुम ध्यातां शिवसुख लहीये, तो तुमने केइ ध्यावे / पण भवस्थिति परिपाक थया विण, कोइ न मुक्ति जावे हो प्रभुजी ओलंभडे० // 2 // सिद्ध निवास लहे भवसिद्धि, तेमां शो पाड तुमारो / तो उपगार तुमारो वहिये, अभवसिद्धिने तारो हो प्रभुजी ओलंभडे० // 3 // . . ज्ञानरतन पामी एकांते, थइ वेठा मेवासी / ते मांहेलो एक अंश जो आपो, ते वाते शाबासी हो प्रभुजी ओलंभडे० // 4 // ____ अक्षय पद देतां भविजनने, संकीर्णता नवि थाय / शिवपद देवा जो समरथ छो, तो जश लेता शुं जाय हो प्रभुजी ओलंभडे० // 5 // ___ सेवागुण रंज्या भविजनने, जो तुमे करो वडभागी। तो तुमे स्वामी केम कहेवाओ, निर्मम ने नीरागी हो प्रभुजी ओलंभडे० // 6 //