________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह .259 धूर्ताई चित्तडे नवि धरशो, कांइ अवलो विचार न करशोरे, सु. जिम तिम जाणी सेवक जाणेजो, अवसर लही सुधी लेजोरे, . सु. // 6 // आसंगे कहिये ते तुमने, प्रभु दीजे दिलासो अमने रे, सु. मोहनविजय सदा मन रंगे, चित्त लाग्युं प्रभुने संगे रे, सु. // 7 // - श्री नेमिनाथ स्तवन (अजित जिणंदसुं प्रीतडी. यह चाल) परमातम पूरण कला, पूरण गुण हो पूरण जन आश / पूरण दृष्टि निहालिये, चित्त धरिये हो अमची अरदास, पर॥१॥ सर्व देश घाती सहु, अघाती हो करी घात दयाल / वास कियो शिवमंदिरे, मोहे विसरी हो भमतो जगजाल, पर॥२॥ जगतारक पदवी लही; तार्या सही हो अपराधी अपार / तात कहो मोहे तारतां, किम कीनी हो इण अवसर वार, पर॥३॥ मोह महामद छाकथी, हुं छकियो हो नहीं शुद्धि लगार / उचित सही इण अवसरे, सेवकनी हो करवी संभाल, पर // 4 // मोह गया जो तारशो, तिण वेला हो किहां तुम उपगार। सुखवेला सज्जन घणा, दुःखवेला हो विरला संसार, पर॥५॥ पण तुम दरिसणजोगथी, थयो हृदये हो अनुभवप्रकाश / अनुभव अभ्यासी करे, दुखदायी हो सहु कर्मविनाश, पर // 6 // कर्मकलंक निवारी ने, निजरूपे हो रमे रमता राम /