________________ 310 4 सज्झायसंग्रह . अग्नि धखन्ती रे शिला उपरे, अरणिके अणसण कीधो जी / रूपविजय कहे धन्य ते मुनिवरु, जेणे मनवांछित फल लीधो जी / अर० // 10 // श्री स्थूलभद्र सज्झाय श्रीस्थूलभद्र मुनिगणमां शिरदार जो, चोमासुं आव्या कोशा आगार जो / , चित्रामणशालाए तप जप आदयां जो // 1 // आदरियां व्रत आव्या छो अम गेह जो, सुन्दरी सुन्दर चंपकवरणी देह जो। हम तुम सरिखो मेलो आ संसारमा जो // 2 // संसारे में जोयुं सकल स्वरूप जो, दर्पणनी छायामां जेहवु रूप जो / स्वपनानी सुखडली भूख भागे नहीं जो // 3 // ना कहेशो तो नाटक करशुं आज जो, . बार वरसनी माया छे मुनिराज जो। ते छोडी हुं जाउं केम आशाभरी जो // 4 // आशा भरिओ चेतन काल अनादि जो, भम्यो धर्मने हीग थयो परमादी जो / न जाणी में सुखनी करणी जोगनी जो // 5 // .