________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 323 विध विध भूषणो धारीने, सजी रूडा शणगार जी। पाण काढी नाखे ताहरो, कुदी कुदी आ वार जी / जोग रे० // 19 // तो पण सामं जोवू नही, गणुं विष समान जी। सूर्य उगे पश्चिम कदी, तो पण छोडुं न मान जी / आशा रे० // 20 // भिन्न भिन्न नाटक मैं कर्या, स्वामी आपनी पास जी / तो पण सामु जोइ तमे, पूरी नहीं मन आश जी। - हाथ रे ग्रहो हवे माहरो // 21 // हाथ जोडी रे हवे वीन, प्यारा प्राणजीवन जी। चार वरसनी प्रीतडी, याद करो तुम मन जी। . हाथ रे० // 22 // चेत चेत रे कोश्या सुन्दरी, शुं कई वारंवार जी / आ संसार असार छे, नथी सार लगार जी / . सार्थक करो हवे देहy // 23 // जन्म धरी आ संसारमा, नहीं ओलख्यो धर्म जी / विध विध वैभव भोगव्या, कीधां घणां कुकर्म जी / सार्थक० // 24 //