________________ 312 4 सज्ज्ञायसंग्रह मोकल्या तो मारगमाहे मलिया जो, संभूति आचारज ज्ञाने बलिया जो। संयम दीधुं समकित तेणे शीखव्यु जो // 13 // शीखव्यु तो कही देखाडो अमने जो, धर्म करन्तां पुण्य वडेरुं तमने जो। समताने घर आवी वेश्या इम कहेजो // 14 // कहे मुनीश्वर शंकाने परिहार जो समकित मूले श्रावकनां व्रत बार जो / प्राणातिपातादिक स्थूलथी उच्चरे जो // 15 // उच्चरे तो वीत्युं छे चोमास जो, आणा लइने आव्या गुरुनी पास 'जो। श्रुतनाणी कहेवाणा चौदे पूरवी जो // 16 // पूरवी थइने तार्या प्राणी थोक जो, . उज्ज्वलध्याने ते गया देवलोक जो ऋषभ कहे नित्य तेहने करिये वंदना जो // 17 // आत्मप्रबोध-सज्झाय पूरव पुण्यसंयोग पामी, नरभव उत्तम जात / शुद्ध देव गुरु धर्म लहीने, म करो प्रमादनी बात रे प्राणी, आतम साधन कीजे // 1 //