________________ 314 4 सज्झायसंग्रह . . .. लाख चोरासी हय गय स्थ जस, सहस चोसठ तस राणी। नव निधि चौद रयण जस मंदिर, लोपे न को तस वाणी रे प्राणी / आ० // 9 // सहस बत्तीस नृप सेवा करता, पायक छिन्नु कोड / ते चक्रवर्ती इण भूमि समाणा, आ जग महोटी खोड रे प्राणी / आ० // 10 // त्रण से साठ संग्रामे शूरा, पूरा जस घरे भोग / ते वासु. देव दैवगति हुआ, मूकी वर सुख जोग रे प्राणी / आ० // 11 // तीन भुवनमांहे कंटकी हुँतो, नामथी डरता देवा / ते रावण राजाने पूठे, कोइ न रह्यो जल देवा रे प्राणी / आ० // 12 // किहां ते राम किहां बलदेवा, पांच पांडव किहां देख / किहां ते नल कौरव कर्णादिक, ए सहु हुवा कथाशेष रे प्राणी / आ० // 13 // जिण घर कनक तोलाता बहुला, कनक तरु तिहां वास / जिण घर रमणी रमती हरिणाक्षी, हरिण चरे तिहां घास रे प्राणी / आ० // 14 // जिण घर मणि माणक मुकवानो, तिल भर न होतो माग। ते घर हुवा रान बरोबर, बेसे घुहड काग रे प्राणी। आ०॥१५॥