________________ 242 3 स्तवनसंग्रह श्री शीतल जिन स्तवन श्री शीतलजिन भेटिये, करी चोखं भक्तं चित्त हो। तेहथी कहो छानुं किस्युं, जेहने सोंप्या तन मन वित्त हो / श्री शीतल० // 1 // दायक नामे छ घणा, पण तूं सायर ते कूप हो / ते बहु खजुवा तग तगे, तूं दिनकर तेजसरूप हो / श्री शी० // 2 // मोहोटो जाणी आदर्यो, दारिद्र भांजो जगतात हो / तूं करुणावंतशिरोमणि, हुं करुणापात्र विख्यात हो। श्री शी० // 3 // अंतरजामी सवि लहो, अम मननी जे छ वात हो / मा आगल मोशालना, शा वरणववा,अवदात हो / श्री शी० // 4 // जाणो तो ताणो किस्युं, सेवा. फल दीजें देव हो / वाचक जस कहे ढीलनी, ए न गमे मुज मन टेव हो / . श्री शी० // 5 // श्री श्रेयांसजिन स्तवन (कर्म न छूटे रे प्राणिया यह चाल) तुमे बहु मैत्री रे साहिबा, मारे तो मन एक / तुम विण बीजो रे नवि गमे, ए मुज मोटीरे टेक।। श्री श्रेयांस कृपा करो // 1 //