________________ - 3 स्तवनसंग्रह . भगतने स्वर्ग स्वर्गथी अधिकुं, ज्ञानीने फल जोइ रे, मन / काया कष्ट विना फल लहिये, मनमां ध्यान धरेइ रे, मन० // 3 // जे उपाय बहुविधनी रचना, योगमाया ते जाणो रे, मन। शुद्ध द्रव्य गुण पर्याय ध्याने, शिव दिये प्रभु सपराणो रे, मन०॥४॥ . प्रभुपद वलग्या ते रह्या- ताजा, अलगा अंग न साजा रे, मन. / वाचक जस कहे अवर न भ्याउं, ए प्रभुना गुण गाउं रे, मन० // 5 // श्री मल्लिनाथजिनस्तवन मनमोहन मल्लिनाथ को जस बोलेंगे, शिवरमणी को रंग घुघट पट खोलेंगे, आं. / मोह्यो मन धन मोरज्युं जस बोलेंगे, .. अब ओर न चाहुं संग, घुघट पट० // 1 // . चिंतामणि को पाय के जस०, कोण राचे काचे काच, धुंघट / को चाहे खरकेलिकुं जस०, , . तजी सुरकुमरीको नाच, धुंघट० म० // 2 // बावलकुं सेवे नहीं जस०, तजी मधुकर मालतीफूल, धुंघट /