________________ 180 5 विविध विचार डी में प्रथम लिख कर फिर ऊपर लिखे क्रम से बाकी के तमाम नक्षत्र लिख लेना चाहिये / इस प्रकार तत्कालीन चक्र तैयार होजाने के बाद उसमें रोगी के जन्म नक्षत्र को देखे कि वह किस नाडी में पड़ा है, अगर आदि नाडी में रोगी का जन्मनक्षत्र पडा हो तो रोगी की मृत्य होने का संभव जानना चाहिये। रोगी का जन्म नेक्षत्र मध्य नाडी में पडा हो तो दीर्घपीडा कहना और रोगी का नक्षत्र अंत्यनाडी में आया हो तो अल्प कष्ट कहना / रोगी का जन्म नक्षत्र जो नाडी चक्र के बाहर के नक्षत्रों में पडा हो तो समझना चाहिये कि नाम मात्र का कष्ट देखकर रोगी अच्छा हो जायगा। रोगि मृत्युज्ञानार्थ त्रिनाडी चक्र दूसरा श्र. & 3 पु. उ. पू. श. म. वि. 1 आ. . . चि... ज्ये. उ. कृ. स्वा. अ. रे. भ. . अ. - इस चक्र के लिखने की रीति भी पूर्वोक्त पहले चक्र के जैसी ही है, फरक मात्र इतनाही है कि पहले चक्रमें रवि नक्षत्र से नक्षत्र लिखने की शुरुआत होती है और इसमें आर्द्रा नक्षत्र से।