________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसग्रह 179 खे, बाद में अंत्य मध्य आदि नाडियों में तीन नक्षत्र लिखकर आदि नाडी के नीचे बाहर तीन नक्षत्र लिखे और फिर आदि नाडी से लेकर अंत्यनाडी तक में तीन नक्षत्र लिख दे। इस प्रकार एक एक नाडी के ५-५-नक्षत्र मिलकर कुल 15 नक्षत्र तीन नाडियों में आयेंगे, अंत्य नाडी के ऊपर दो जगह लिखे हुए ३-३-नक्षत्र और आदिनाडी के नीचे बाहर दो जगह लिखे हुए ३-३-नक्षत्र मिलकर कुल 12 नक्षत्र नाडियों के बाहर आयेंगे। चक्र की स्थापना - रो. आ. . वि. ज्ये. 3 कृ. पु. स्वा. मू. 2. भ. पु. चि. पू. 1 अ. अ. ह. उ. पू. म. उ. . श्र. श. ध. ___ इस चक्र में रवि नक्षत्र से लिखने का प्रारंभ करना चाहिये / यहां पर अश्विनी से प्रारंभ करके कुल नक्षत्र लिखे हैं, क्योंकि अश्विनी को ही यहां कल्पना से रवि नक्षत्र मान लिया है। देखने के समय रोगी जिस समय बीमार पडा उस समय सूर्य किस नक्षत्र पर था इस बात का निश्चय पंचांग में देखकर कर लेना चाहिये और फिर उस नक्षत्र को आदि ना