________________ __ श्रीजैनशान-गुणसंग्रह 63 गाडी, एका, रेलगाडी, मोटर, साईकल आदि पर और आकाशं मार्ग से विमान, हवाई जहाज एरोप्लेन विगैरह पर बैठ कर दशों दिशाओं में जाने आनेका योजनों में, कोशों में, मीलों में, गजों में अगर कदमों में नियम करना चाहिये। चार विदिशाओं का ठीक पता न रहने के कारण आज कल पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, ऊर्ध्व और अधो इन छः दिशाओं का ही नियम किया जाता है। ___ कूप, बावडी, टांका, भूमिगृह सुरंग आदिमें उतरना अथवा पहाडसे नीचे उतरना 'अधो दिशा गमन' है और नीचेवालों को पहाड पर चढना 'उर्ध्व दिशागमन' / व्रत लेनेवालों को अपनी स्थिति का विचार कर के इस विषय में नियम करना चाहिये / नियम किये हुए क्षेत्र के बाहर सांसारिक कार्य के लिये अथवा मौज शोक और हवा खोरी के निमित्त नहीं जाना चाहिये, तीर्थयात्रा के निमित्त जाने की जयणा / पवन के तूफान से नाव आगबोट विगैरह घसीट कर हद के आगे ले जाय, भूल से हद के आगे चला जाय, चौर विगैरह पकड कर दूर ले जाय तो व्रत भंग नहीं होता। नियत क्षेत्र के बाहर कागज-पत्र तार टेलीफोन भेजने मंगाने की जयणा। प्रतिज्ञा- . .. "मैं देवगुरु साक्षिक दिशा गमन को नियमित करता हूं। भिन्न भिन्न दिशाओं में जाने के लिये रक्खे हुए अव