________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 105 दूसरे शुक्ल पक्ष की दूज का तथा तीसरे शुक्ल पक्ष की तीज का एक एक उपवास कर अनुक्रम से पंद्रह शुक्ल पक्ष में तप संपूर्ण करे / त्रिकाल देववंदन करे / मुनिसुव्रत भगवान् का स्तवन कहे / 'श्री मुनिसुव्रतसर्वज्ञाय नमः' इस पद की 20 नोकरवाली गिने / तप की समाप्ति के दिन चांदी का पालणा सुवर्ण पुतली तथा लड्ड का थाल जिन मंदिर में चढावे स्नात्र पूजा भी पढावे / पौष दशमी तप की विधि ___ पौष दशमी के पहले दिन याने नवमी के दिन शक्कर के पानी का एकासणा करे, उस दिन सिर्फ गरम जल में शक्कर डाल कर पी लेवे, बाद दशमी को ठाण एकासणा याने भोजन और जल एक ही साथ लेवे, ऊपर चउविहार कर लेवे, तथा उस दिन जिनमंदिर में पंच कल्याणक की पूजा भणावे और 'पार्श्वनाथ अर्हते नमः' इस पद की वीस नवकरवाली गिने, फिर एकादशी को हमेशा के मुआफिक एकासणा करे। तीनों दिन सुबह शाम प्रतिक्रमण करे, तीनों टङ्क देव वंदन करे, " ब्रह्मचर्य पाले, जमीन पर सोवे / इस रीति से यह तप दशवर्ष में पूर्ण होता है / तप की समाप्ति में ज्ञान दर्शन और चारित्र के दश दश उपकरण चढा कर उजमणा करें, अठाई महोच्छव कर साधर्मी वात्सल्य भी करें।