________________ 162 5 विविध विचार ___यदि देव और धनिक में योनिवैर हो और देव की योनि भी बलवान् हो तथापि वहां जातिवैर न हो तो वह वैर भी अवश्य वर्जनीय नहीं है, क्योंकि योनिवैर जातिवैर रूप होने पर ही अवश्य वर्जनीय है। गणवैर में अपवाद . . - इसी प्रकार धनिक और देव के नक्षत्रों में गणवैर होने पर भी धनिक का गण बलवान् और 'देव' का गण निर्बल होने पर गणवैर का असर नहीं रहता। उदाहरण-सुरत का गण 'राक्षस' है और आदिनाथ तथा अजितनाथ का गण 'मानव' / यद्यपि मानव राक्षस का भक्ष्य है तथापि मानवगण वाले राक्षसगण वाले से बलवान हैं इस कारण यहां गणविरोध हानिकारक नहीं हो सकता। राशिवैर में अपवाद राशिकूट में हम लिख आये हैं कि देव धनिक के अन्योन्य नव पंचम, षडष्टक और दूसरा बारहवां राशि हो तो वर्जनीय हैं, परन्तु इन दोनों राशियों के स्वामियों में परस्पर मित्रभाव हो तो ये राशिकूट दूषित नहीं हैं। 1 "धनिकस्य योनिवर्गों अबलौ परं नायं विशिष्य दोषः, जातिवैराभावात् / शास्त्रेषु च योनिसत्कस्य जातिवैरस्यैव xxxवर्जनात्"। (धारणागतियन्त्र आम्नाये)। 2 देखो पूर्वके पृष्ठमें टिप्पण नंबर 1 / . 3 “यत्र तु षडष्टक-द्विादश-नवपञ्चमेषु न राशिमैत्री तानि स्वामिमैत्रगं ग्राह्याणीति / " (धारणा ग. यं. आम्नाये )