________________ 118 5 विविधि विचार 11 विपाकसूत्र-इसमें सुख दुःख या कर्मफल भुगतने संबंधी अधिकार है, इसके अध्ययन 20, श्लोक 1216, अभयदेवसूरिटीका श्लोक 900, सर्व श्लोक 2116, हैं। कुल ग्यारह अंग की मूल संख्या 35659 तथा टीका 73544, चूर्णि 22700, नियुक्ति 700, मिल कर 132603 श्लोक हैं', इसमें आचारांग और सुयगडांग की टीका शीलांगाचार्य कृत है, बाकी नव अंग की टीकायें अभयदेवसूरि कृत हैं / इसी लिये इनका नाम 'नवांगवृत्तिकार अभयदेवसूरि' जैनसंघ में मशहूर है। 12 बारह उपांग सूत्र. 1 उववाइ सूत्र-इसमें कोणिक राजा महावीर स्वामी के दर्शनार्थ गया उसका वर्णन है, तथा स्वर्ग में कौन कहां उत्पन्न हो सकता है उसका निरूपण है। यह आचारांग प्रतिबद्ध उपांग है / मूल संख्या 1200, अभयदेव टीका श्लोक 3125, और कुल संख्या 4325 श्लोक हैं। 2 रायप्पसेणीय-पार्श्वनाथ संतानीय केशीकुमार श्रमण ने प्रदेशी राजा को नास्तिक मत छुडाकर आस्तिक धर्म में लाया उसका तथा वही प्रदेशी गुजर कर सूर्याभ देव होकर वापस 1 ताडपत्रीय सूची में अंगों की श्लोक संख्या 132486 लिखी है। 2 ताडपत्रीय सूची में सूत्र श्लोक संख्या 1167 और सर्व संख्या 4292 लिखी है /