________________ 3 श्रावक-द्वादश व्रत . काश के उपरान्त न मैं स्वयं जाऊंगा न दूसरे को भेजूंगा।" अतिचार (1) ऊर्ध्वदिशातिक्रम-प्रमाद से या भूलसे ऊर्ध्व दिशा में परिमाण से अधिक ऊपर चढे तो 'ऊर्ध्वदिगतिक्रम' नामातिचार। (2) अधोदिशातिक्रम-भूल प्रमाद से परिमाण से ज्यादा नीचे जाने से 'अधोदिगतिक्रम' नामातिचार / ___ (3) तिर्यदिशाअतिक्रम-पूर्व पश्चिमादि तिरछी दिशा विदिशा में परिमाण से अधिक भूल से खुद जावे या अपने नौकर को भेजे तो तीसरा अतिचार / ___(4) परस्पर परिमाण परावर्तन-एक दिशा में कम कोश रक्खें है और दूसरी में अधिक, कालान्तर में कम परिमाण वाली दिशा में अधिक दूर जाने के संयोग उपस्थित हो जाय तब जिस दिशामें अधिक दूर जानेकी छूट है उस को कम कर दे और कम परिमाण को अधिक बढा दे, और यह सौचे कि मैं अपने नियमित योजनों से अधिक आगे नहीं गया। इस प्रकार. दिशाविपरिणाम करने से चौथा अतिचार लगता है। (4) स्मृतिअंतर्धान अपने नियम को भूल जावे, न मालूम पूर्व दिशा में 100 कोश रक्खे हैं या 50 / इस तरह संशय में पड़ा हुआ 100 कोश का परिमाण होते हुए भी 50 कोश से अधिक चला जाय तो पांचवाँ अतिचार