________________ . .. . श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह पुत्र धन विगैरह का वियोग न हों ऐसी चिंता करना इस को 'अपध्यान' अनर्थदंड कहते हैं। ___ 2 पापोपदेश-पाप का उपदेश करे, जैसे खेती वाले को कहे 'तुम हल क्यों नही जोतते ? हलवाई की भठी ठंडी पडी देख कर कहे-' आज भठी क्यों नहीं जलाते ? इस प्रकार विना प्रयोजन पाप की राय देना इस को 'पापोपदेश' अनर्थदंड कहते हैं। 3 हिंस्रप्रदान-कुदाला, हलवाणी, कुल्हाडी, बंदूक विगैरह हिंसा के उपकरण किसी को मांगे बगैर मांगे दे उसका नाम 'हिंस्रप्रदान' हैं। ___4 प्रमादाचरित-विना मतलब कामशास्त्र सीखना, जुगार में पडना, दरखतों में हिंचोला बांधकर हींचना, कुत्ते बिल्ली घेटे असे विगैरह को आपस में लड.ना चार प्रकार की विकथा करना, मंदिर में हांसी ठठे करना इत्यादि सब 'प्रमादाचरित ' अनर्थदंड. कहा जाता हैं, इन चारोंका श्रावक त्याग करे। प्रतिज्ञा- "मैं देवगुरु साक्षिक हिंस्रप्रदानादि चतुर्विध अनर्थदण्ड का जीवनपर्यन्त के लिये यथाशक्ति त्याग करता हूं।" भतिचार- (1) कंदर्पचेष्टा-हाथ पांव, आंख आदि की चेष्टा से