________________ न श्रीजैनशान-गुणसंग्रह कर खाऊंगा, स्नान करूंगा, तैल लगाऊंगा ऐसी कल्पना करे, तथा पौषध में विकथा करे और दोष न टाले तो पांचवा अतिचार लगता है। नियम प्रतिवर्ष आठ पहर के पोसह करूंगा। प्रति वर्ष चार पहर के पोसह करूंगा। . अतिथि संविभागवतस्वरूप__ पौषधोपवासवत के पारणे साधु मुनिराज को दान दे कर पीछे खाना उसका नाम 'अतिथि संविभाग' व्रत है। पहले दिन जहां तक बन सके उपवास पूर्वक 8 पहर का पौषध करे, दूसरे दिन पारणा में एकासना कर मुनिराज को वहरावे और जितनी चीजें मुनि लेवे उतनी ही आप खावे यह अतिथिसंविभाग का तात्पर्य हुआ। . : दान देते वक्त दाता में 5 गुण होने चाहिये-१ हर्षाश्रुइष्ट मनुष्य के मिलने पर जैसा हर्ष होता है वैसा हर्ष दान देते वक्त श्रावक को होवे, हर्ष के आंसु आवें / 2 रोमांच-दान देते वक्त शरीर के रोम खडे हो जावें / 3 बहुमान-मुनि को देख कर उनका बहुमान करे। (4) प्रियवचन-दान देता हुआ मधुर और विनय युक्त वचन बोले और 5 अनुमोदनादान की वार वार प्रशंसा करे। 'फिर कब ऐसा दान दूंगा' ऐसी भावना रक्खे /