________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह अतिचार-.. (1) काय दुष्प्रणिधान-शरीर को या उसके किसी अंश. को विना पूंजे इधर उधर हिलाना। (2) मनोदुष्प्रणिधान-दिल में खराब विचार करना / (3) वचन दुष्प्रणिधान-आरंभ के वचन बोलना या सामायिक सूत्र ज्यादा कमती बोलना। (4) अनवस्था--सामायिक का वक्त पर न करना, अथवा करके शांति न रखना / (5) स्मृतिविहीन-सामायिक सूत्र पाठ बोला या नहीं अथवा सामायिक का काल पूरा हुआ या नहीं इस प्रकार स्मृति विहीन होकर शंकाशील बनना। नियम प्रतिदिन सामायिक करूंगा। ___ अथवा महीने में---और वर्ष में सामायिक करूंगा। . देशावकाशिक व्रतस्वरूप. पहले के व्रतों में जो नियम किया है उनमें संक्षेप करना अथवा छठे व्रत में जाने आने का परिमाण किया है उसको उस दिन के लिये कम करके दो पांच कोश रखना, अथवा 'आज गांव के दरवाजे तक जाऊंगा; आगे नहीं' ऐसी धारणा करना उसको देशावकाशिक कहते हैं / यह देशावकाशिक 1