________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह हूँ। आजीवन. न स्वयं बड़ी चोरी करूंगा, न अन्य से कराऊंगा।" अतिचार-- (1) स्तेनाहृत-चोरी का माल खरीदना यह स्तेनाहत अतिचार है। चोरी का माल लेने वाला भी एक तरह का चोर ही है। हेमचंद्राचार्य ने योगशास्त्र में सात प्रकार के चोर बताये हैं देखो "चौरश्चौरापको मंत्री, भेदज्ञः काणकक्रयी। अन्नदः स्थानदश्चैव, चौरः सप्तविधः स्मृतः // 1 // " तात्पर्य-चोरी करने वाला 1, चोरी कराने वाला 2, चोरी की राय देने वाला 3, चोरी का भेद जाननेवाला 4, चोरी का माल खरीदने वाला 5, चोर के खान पान की व्यवस्था करने वाला 6, तथा चोर को रहने की जगह देनेवाला 7, ये सात प्रकार के चोर होते हैं। : (2) स्तेनप्रयोग-चोरी करने वाले को चोरी की प्रेरणा करना 'तुम आजकल चुपचाप क्यों बैठे हो ?, तुम्हारे पास खर्चा न हो तो मैं दूं, तुम्हारी लाई हुई चीज मैं वेच डालूंगा' इस तरह प्रेरणा करना इसका नाम 'स्तेनप्रयोग' अतिचार है / ____ (3) तत्प्रतिरूपक व्यवहार-अच्छी चीज में खराब चीज मिला कर बेचे, जैसे दूध में जल, केशर में कसुंबा, घी में वेजिटेबल घी मिला कर वेचे / पुराने कपड़े को रंग कर नये कपडे के भाव में बेचे / यह तीसरा अतिचार है।