________________ 54 3 श्रावक-द्वादश व्रत ... (4) विरुद्ध गमन-अपने देश के राजाने जहां जाने को मना किया हो वहां जावे तो चोथा 'विरुद्ध गमन' नाम का अतिचार। __(5) कूटतुला कूटमान-खोटे तोल माप रक्खे, कमती तोल से देवे और अधिक तोल से लेवे यह पांचवाँ अतिचार। स्वदारसंतोष-परस्त्रीविरमण स्वरूप इस व्रत के दो भाग हैं-' स्वस्त्रीसंतोष' और 'परस्त्री विरमण / ' अपनी स्त्री से संतोष कर दूसरी स्त्री का त्याग करना इसका नाम है ' स्वदार संतोष' और दूसरे की स्त्री का त्याग करना उसका नाम 'परस्त्री विरमण' / ___मैथुन दो प्रकार का होता है, .1 द्रव्य मैथुन और 2 भाव मैथुन। द्रव्य मैथुन का अर्थ है स्त्री पुरुष का शारीरिक संबंध, और भाव मैथुन है शरीर से संबंध न होते हुए दिल में स्त्री विषयक ध्यान करना अर्थात् दिल में विषयों की चाहना करना। भाव मैथुन संसारी से कतई बंद होना कठिन है परंतु द्रव्य मैथुन में परस्त्री का त्याग कर अपनी स्त्री से संतुष्ट रहना गृहस्थ से हो सकता है। अपनी स्त्री से भी दिन को कभी संबंध न करना चाहिये, धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि वैद्यक दृष्टि से भी दिन में स्त्रीसंग का निषेध है, क्यों