________________ 37 श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह अधिकार पर रखा हुआ हो तो बात ओर है, कारण कि वह जैन श्रावक होने से विवेक और भक्तिपूर्वक ही कार्य करेगा। ___यहां कोई सवाल करेगा कि श्रावक पगारदार पूजारी कैसे हो सके ?, इसका उत्तर यह है कि कोई श्रावक गरीब हालत में हो तो वह साधारण खाते से मासिक पगार ले कर पूजारी बन सकता है / साधारण खाते से पगार लेने पर देवद्रव्य का दोष नहीं लगता। मंदिर में चावल सुपारी फल नैवेद्य विगैरह जो पूजापा आवे वह देवका निर्माल्य होने से श्रावक पूजारी को न देकर मंदिर में झाडू निकालने वाला या कोई नोकर हो उसको दे दिया जावे और सिर्फ साधारण खाते से पगार देकर पूजारी रखा जाय तो श्रावक को कोई दोष नहीं। . (4) मंदिर में खुले दीवों की रोशनी न होनी चाहिये / कई जगह देखा है कि जिस दिन मंदिर में अंगी बनाई जाती है उस दिन शामको (संध्या समय में) खूब रोशनी करते हैं वहां खुले गिलासो में तैल भर कर बत्ती लगा देते हैं जिससे पतंगिया विगैरह अनेक जीवों का विनाश होता है। बताइये ऐसी रोशनी किस काम की / अगर रोशनी की इच्छा हो तो काच के बंद फाणस लगावे जिससे जीवों की हिंसा रुक जावे / दीवा रोशनी में पूरा विवेक रखना चाहिये। .. (5) अन्त में कहना यह है कि श्रावक लोग अगर बुद्धिमान हैं और उन में विचारशक्ति हैं तो अपने यहां प्रतिमाओं ' का संग्रह न करके जहां खास जरूरत हो वहां भेजे दें, और