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अभुज-अमनैक (अनकैश्ड) जिसका उपभोग या भुगतान न किया गया पत्रादि) जो किसीको विधिवत् अर्पित या संप्रदत्त कर हो; अछूता, अव्यवहृत; जिसने भोजन या भोग न किया दिया गया हो, तामील । हो। -पूर्व-वि०जिसका पहले उपभोग न किया गया अभ्यसनीय,अभ्यसितव्य-वि०सं०] अभ्यास करने योग्य। हो। -मूल-पु० ज्येष्ठा नक्षत्रके अंत और मूल नक्षत्रके अभ्यस्त-वि० [सं०] अच्छी तरह सीखा हुआ, मश्क किया आदिकी दो-दो घड़ियाँ ।
हुआ; अधीत, पढ़ा हुआ; जिसने अभ्यास किया हो, कुशल; अभुज-वि० [सं०] बाहुरहित, लूला।
पक्का; आदी। अभू-* अ० अब भी।
अभ्यागत-वि० [सं०] सामने या पास आया हुआ अभूखन*-पु० दे० 'आभूषण' ।
अतिथिके रूपमें आया हुआ। पु० अतिथि, मेहमान । अभूत-वि० [सं०] जो हुआ न हो; अविद्यमान; मिथ्या अभ्यास-पु० [सं०] किसी कामको बार-बार करना, मश्क; असाधारण । -पूर्व-वि. जो पहले न हुआ हो; सीखना; अध्ययन; आदत; सैनिक अनुशासन आदि। अनोखा; अद्भुत ।
अभ्यासी (सिन्)-वि० [सं०] अभ्यास करनेवाला, अभूषित-वि० [सं०] अनलंकृत, बिना गहनेका । साधक । अभेद-पु० [सं०] भेदका अभाव, एकता; एकरूपता। वि० | अभ्युक्ति-स्त्री० [सं०](रिमाक) आलोचना या व्यंग्यके ढंगपर भेद-रहित, अनुरूप; अविभक्त; * दे० 'अभेद्य' ।-रूपक- कही गयी कोई बात; किसीके कथनपर या किसी विषयके पु० रूपकालंकारका एक भेद जिसमें उपमान और उप- संबंधमें की गयी उक्ति । मेयकी एकता बतायी जाती है।
अभ्युत्थान-पु० [सं०] उठना; किसीके सम्मानमें उठकर अभेद्य-वि० [सं०] जिसका भेदन न हो सके जिसमें घुसा | खड़ा हो जाना; बढ़ती, उत्कर्ष; उदय। न जा सके; अविभाज्य । पु० हीरा।।
अभ्युदय-पु० [सं०] सूर्य-चंद्रादिका उदय; वृद्धि, समृद्धि अभेय(व)*-पु० अभेद, एकता । वि० अभिन्न, एक । उत्तरोत्तर वृद्धि; इष्टलाभ; उत्सव; आरंभ। अभेरना-सक्रि० संयुक्त करना; मिश्रण करना, मिलाना। | अभ्युदाहरण-पु० [सं०] मिसाल या विपरीत बातके द्वारा अभेरा*-पु० रगड़, टक्कर, मुठभेड़ ।
किसी विषयका स्पष्टीकरण । अभै*-वि० दे० 'अभय'।
अभ्युपगम-पु० [सं०] पास जाना, पहुँचना; पाना; वादा अभोक्तव्य-वि० [सं०] जिसका उपभोग या उपयोग न करना; मानना, स्वीकार करना ।-सिद्धांत-पु० परीक्षाके किया जाय।
लिए पहले स्वीकार कर पीछे खंडन करना । अभोक्ता (क्त)-वि० [सं०] उपभोग न करनेवाला; परहेज अभ्रंकष-वि० [सं०] गगनचुबी, बहुत ऊँचा । पु० हवा । करनेवाला, विरक्त।
अभ्रंलिह-वि० [सं०] बहुत ऊँचा । पु० वायु । अभोग-पु० [सं०] भोगका अभाव । * वि० अभुक्त। अभ्र-पु० [सं०] बादल; आकाश; सोना; अभ्रक; कपूर अभोगी (गिन)-वि० [मं०] अभोक्ता; विरक्त ।
-भेदी(दिन)-वि० गगनचुंबी। अभोग्य-वि० [सं०] जो भोग करने योग्य न हो, जिसे अभ्रक-पु० [सं०] एक धातु, अबरक। भोगना वर्जित हो।
अभ्रांत-वि० [सं०] भ्रमरहित, यथार्थ झाता; धीर । अभोज*-वि० दे० 'अभोज्य'
अमंगल-वि० [सं०] अशुभ, अकल्याणकर; भाग्यहीन । अभोजन-पु० [सं०] न खाना, खानेसे परहेज, उपवास। | पु० अकल्याण, अनिष्ट; दुर्भाग्य; एरंड वृक्ष । अभोज्य-वि० [सं०] न खाने योग्य; जिसके खानेका अमंद-वि० [सं०] सुस्त नहीं, तेज; परिश्रमी; उग्र कम निषेध हो।
नहीं, ज्यादा सुंदर; कुशल । अभौतिक-वि० [सं०]जो पंचभूतोंसे न बना हो, अपार्थिव । अमका-वि० ऐसा-ऐसा; अमुक, फलाना । अभ्यंग-पु० [सं०] लेपन; तेल-उबटन आदिकी मालिश। अमच(चू)र-पु० सुखाये हुए कच्चे आमका चूर । अभ्यंजन-पु० [सं०] दे० 'अभ्यंग'; आँखोंमें सुरमा या अमड़ा-पु० एक खट्टा फल । अंजन लगाना; तेल, अंगरागादि ।
अमतदेय व्यय-पु० [सं०] (नॉन-वोटेबिल एक्सपेंडिचर) अभ्यंतर-पु० [सं०] वस्तुका भीतरी भाग; भीतरका या वह व्यय जिसके संबंधों (धारासभाके) सदस्योंको मत बीचका अवकाश; अंतःकरण । अ० भीतर, अंदर ।
देनेका अधिकार न हो। अभ्यंश-पु० [सं०] (कोटा) दे० बंटितांश', 'नियतांश'। । अमत्त-वि० [सं०] जो नशेमें न हो; सही दिमागका; अभ्यर्चन-पु०, अभ्यर्चना-स्त्री० [सं०] पूजा, आराधन । सावधानः विचारशील । अभ्यर्थन-पु०, अभ्यर्थना-स्त्री० [सं०] बिनती, प्रार्थना अमधुर-वि० [सं०] कड़वा, अरुचिकर । दरख्वास्त; अगवानी, स्वागत ।
अमन-पु० [अ०] शांति, इतमीनान; रक्षा । -अमानअभ्यर्थनीय, अभ्यर्थ्य-वि० [सं०] अभ्यर्थना करने योग्य। पु० शांति और सुरक्षा या सुव्यवस्था । -चैन-पु० सुखअभ्यर्थित-वि० [सं०] जिसकी अभ्यर्थना की गयी हो। | शांति । -पसंद-वि० शांतिप्रिय । अभ्यर्थी (र्थिन्)-वि० [सं०] अभ्यर्थना करनेवाला । पु० अमनिया*-वि० पवित्र, शुद्ध; अछूता । स्त्री० भोजन (कैंडिडेट) किसी परीक्षामें बैठने या नौकरी आदिके लिए बनानेकी क्रिया; रसोई पकाना।। आवेदन-पत्र देनेवाला ।
अमनक-पु० सरदार, अवधमें काश्तकारोंका एक विशेष अभ्यर्पित-वि० [सं०](सर्व ड) (वह सरकारी आदेश, आह्वान वर्ग । वि० दावेदार, अधिकारी ढीठ ।
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